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छठे ईस्ट जोन न्योकॉन के पहले दिन वैज्ञानिक सत्रों की रही धूम

छठे ईस्ट जोन न्योकॉन के पहले दिन वैज्ञानिक सत्रों की रही धूम


होटल मौर्या, पटना में आयोजित छठे ईस्ट जोन न्योकॉन (नवजात शिशु विशेषज्ञों का वार्षिक अधिवेशन) के प्रथम दिन विविध वैज्ञानिक सत्रों की भरमार रही। देशभर से आए नवजात शिशु विशेषज्ञों ने नवाचारों, नई दवाओं, उपचार पद्धतियों और सस्ते प्रभावी उपायों पर विचार-विमर्श किया।

आयोजन सचिव डॉ. श्रवण कुमार के सत्र की अध्यक्षता डॉ. निगम प्रकाश नारायण, डॉ विवेकानंद सिंह एवं डॉक्टर हेमा चरण ने की। इस अवसर पर डॉ. श्रवण कुमार ने नवजात शिशुओं की शौक की गंभीर बीमारी के प्रबंधन पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने कहा कि डोपामीन का प्रयोग अब पुराना पड़ चुका है; वर्तमान में “डोबुटामीन” अधिक प्रभावी सिद्ध हो रही है, साथ ही मिलिनॉन का भी उपयोग किया जा सकता है।

दिन के सबसे चर्चित सत्र का संचालन डॉ. राजेश कुमार ने किया, जिसमें डॉ. सौगात चौधरी (कोलकाता), डॉ. विनय रंजन, डॉ. अनिल कुमार, डॉ. प्राची और डॉ. राजीव शरण शामिल थे। पैनल ने इस बात पर बल दिया कि यद्यपि आज नवजात चिकित्सा में नई दवाओं और उपकरणों की भरमार है, फिर भी बिहार जैसे संसाधन-सीमित राज्यों में कम खर्च वाले उपायों से मृत्यु दर और इंटैक्ट सर्वाइवल दर को बेहतर किया जा सकता है। उन्होंने 11 सस्ते लेकिन प्रभावी हस्तक्षेपों की अनुशंसा की, जिनमें —
जन्म के तुरंत बाद माँ-बच्चे का संपर्क, शीघ्र स्तनपान, मिल्क बैंक की स्थापना, श्वसन सहायता हेतु सीपैप एवं सर्फेक्टेंट का उपयोग प्रमुख रहे।

सत्र का आरंभ डॉ. रूपेश कुमार के व्याख्यान से हुआ, जिसकी अध्यक्षता डॉ. परमेश्वर प्रसाद एवं डॉ. पंकज कश्यप ने की। उन्होंने भारतीय संदर्भ में आधुनिक ग्रोथ चार्ट्स की उपयोगिता पर प्रकाश डाला।

डॉ. नीता कलवानी ने कहा कि नवजात शिशुओं की बीमारियों की गंभीरता को सांख्यिकीय रूप में दर्ज करने से उपचार की गुणवत्ता बढ़ेगी और अभिभावकों को बेहतर परामर्श देना संभव होगा।

डॉ. तनुश्री साहू एवं डॉ. श्रेया आकांक्षा ने पीपीडी (एक तरह का नवजात शिशु की जन्मजात हृदय रोग) के इलाज पर एक विचारोत्तेजक बहस प्रस्तुत की, जबकि डॉ. रीता बोरा ने नवजात शिशु पुनर्जीवन के नैतिक पहलुओं पर प्रकाश डाला।

डॉ. विजन साहा की अध्यक्षता में डॉ. अशोक तालपत्रा, डॉ. मानस्विनी साहू, डॉ. दीपेन्द्र, डॉ. नरेंद्र प्रसाद और डॉ. नीरज मिश्रा ने एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस पर पैनल चर्चा की। इसकी अध्यक्षता डॉ. शीला सिन्हा एवं डॉ. नीलम वर्मा ने की। विशेषज्ञों ने जोर दिया कि सही एंटीबायोटिक, सही समय पर और सही अवधि में देना उपचार की सफलता की कुंजी है।
हमेशा की तरह डॉ. विनोद कुमार सिंह ने अपने नवाचारों के माध्यम से नवजातों के समयपूर्व जन्म के प्रबंधन पर महत्वपूर्ण प्रस्तुति दी। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. एस. बी. पी. सिंह एवं डॉ. एस. ए. कृष्णा ने की।
डॉ. गौरव गुप्ता ने मेनिनजाइटिस के उपचार में आने वाली दुविधाओं पर चर्चा की, जबकि डॉ. जगदीश प्रसाद साहू, डॉ. सौरभ कुमार, डॉ. श्याम बिहारी, डॉ. विवेक पांडेय एवं डॉ. रूपेश कुमार ने जन्मकालीन मस्तिष्क एन्सेफेलोपैथी पर विचार साझा किए। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. विजय जैन एवं डॉ. विजय कुमार सिंह ने की।

नवाचार की श्रेणी में डॉ. संदीप झाझरा, डॉ. नम्रता और डॉ. रिची दलाई ने थेरैप्यूटिक हाइपोथर्मिया पर प्रस्तुति दी, जबकि डॉ. दिनेश तोमर ने बीपीडी प्रिवेंशन में सिस्टेमिक स्टेरॉयड के प्रयोग पर व्याख्यान दिया।
राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. ललन भारती ने रिसोर्स-लिमिटेड सेटिंग्स में मृत्यु दर घटाने वाले प्रमाणित उपायों पर जोर दिया। वहीं डॉ. देवाशीष चंदा ने क्वालिटी इंप्रूवमेंट प्रोग्राम्स के महत्व पर बल दिया।

यूनीसेफ द्वारा समर्थित मदर-न्यूबॉर्न केयर यूनिट की अवधारणा पर डॉ. सुगंधा आर्या (सफदरजंग) ने ऑनलाइन प्रस्तुति दी, उसपर सभागार में उपस्थित डॉ सिद्धार्थ शंकर रेड्डी (यूनिसेफ) और डॉ. ललन भारती (प्रेसिडेंट ईलेक्ट एन एन एफ) ने अपने विचार रखे। उन्होंने कहा — माँ और शिशु को एक इकाई (डुओ) के रूप में देखना चाहिए, और हर संभव प्रयास होना चाहिए कि दोनों को साथ रखा जाए।
दिनभर चले इन वैज्ञानिक सत्रों में उपस्थित विशेषज्ञों ने साझा रूप से यह निष्कर्ष निकाला कि संसाधन सीमित परिस्थितियों में भी ज्ञान, प्रशिक्षण और सरल हस्तक्षेपों के माध्यम से नवजात मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी लायी जा सकती है।
पूरे वैज्ञानिक सत्र का संचालन डॉक्टर चंदन कुमार ने आयोजन सचिव डॉक्टर श्रवन कुमार एवं डॉक्टर भावेश कांत चौधरी और अध्यक्ष डॉ विनोद कुमार सिंह के सहयोग से किया

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